आंत की बीमारी लीशमैनियासिस के उपचार के लिए एक आसान, सस्ता, मौखिक बायोफर्मासिटिकल विकसित


नई दिल्ली. भारतीय शोधकर्ताओं ने अब तक उपेक्षित एक उष्णकटिबंधीय बीमारी काला अजार (विसरल लीशमैनियासिस) के खिलाफ एक बड़ी सफलता प्राप्त की है. शरीर में बिना सुई के प्रविष्ट हो सकने वाली कम लागत की प्रभावी और रोगी के अनुरूप संभावित चिकित्सीय रणनीति विकसित की है. विटामिन बी12 के साथ लेपित नैनो कैरियर-आधारित मौखिक दवाओं पर आधारित शोधकर्ताओं की इस रणनीति ने मौखिक जैव-उपलब्धता और उपचार की प्रभावकारिता को 90% से अधिक बढ़ा दिया है.

काला अजार अर्थात् विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) एक जटिल संक्रामक रोग है जो मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज़ (मक्खियों) के काटने से फैलता है। यह एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी है जो प्रति वर्ष लाखों लोगों को प्रभावित करती है, जिससे यह मलेरिया के बाद दूसरा सबसे आम परजीवी प्राणघातक रोग बन जाता है। वीएल की पारंपरिक उपचार चिकित्सा में मुख्य रूप से रक्त वाहिनियों में दर्दनाक सुइयां (इंजेक्शन) लगाना शामिल है जिसके कारण उपचार जटिल हो जाता है और इसके लिए लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना, महंगा उपचार और संक्रमण के उच्च जोखिम भी बढ़ जाते हैं।

मुंह से खाई जने वाली औषधि से बहुत लाभ होता है और तब ऐसी कठिनाइयों के निराकरण में सहायता भी मिलती है किन्तु सीधे खाई जाने वाली औषधियों के साथ कई अन्य चुनौतियां भी हैं क्योंकि ऐसी मुख मार्ग से दी जाने वाली 90 प्रतिशत से औषधियों की 90% की जैव-उपलब्धता इस समय 2% से भी कम है और इनके उपयोग से यकृत  (लीवर) और वृक्कों (गुर्दे- रीनल) पर अन्य विषाक्त प्रभाव होने की भी आशंकाएं बनी रहती हैं।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) से डॉ. श्याम लाल के नेतृत्व में एक दल ने प्राकृतिक आंतरिक विटामिन बी12 माध्यम का उपयोग करते हुए एक त्वरित चुस्त और बुद्धिमान नैनोकैरियर विकसित किया है। यह मानव शरीर में स्थिरता चुनौतियों और औषधियों/ मादक पदार्थों से संबंधित विषाक्तता को कम कर सकता है। उन्होंने एक जैव सक्षम (बायोकंपैटिबल) लिपिड नैनोकैरियर के भीतर इस रोग की विषाक्त लेकिन अत्यधिक प्रभावी दवा को शत्रुतापूर्ण जठरीय (गैस्ट्रिक) वातावरण में नष्ट होने से बचाया है. इस प्रकार किसी भी विजातीय संश्लेषित औषधि अणु (फॉरेन सिंथेटिक मॉलिक्यूल) द्वारा सहन किए गए जठरान्त्रीय (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) एंजाइमेटिक बाधाओं पर काबू पा लिया है। जैसा कि संबंधित पशु अध्ययनों में दिखाया गया है, इसने इसके परवर्ती दुष्प्रभावों को कम किया जबकि दूसरी ओर प्राकृतिक आंतरिक विटामिन बी12 माध्यम ने मुंह से उदरस्थ की जा सकने वाली औषधि की जैव-उपलब्धता और काला अजार रोधी (एंटीलीशमैनियल) चिकित्सीय प्रभावकारिता को 90% से अधिक बढ़ा दिया। इस शोध को डीएसटी-एसईआरबी अर्ली करियर रिसर्च अवार्ड के तहत सहायता दी गई थी और इसका प्रकाशन सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग सी में किया गया था।

नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) की टीम ने विटामिन बी12 (वीबी12) लेपित ठोस लिपिड नैनोकणों की प्रभावकारिता और गुणों का गम्भीरता से मूल्यांकन किया और साइटोटोक्सिसिटी से बचने और स्थिरता को बढ़ाने में उनके बाद के संभावित प्रभाव का भी  मूल्यांकन किया।

उन्होंने मुंह से औषधि के साथ लिए जाने वाले नैनोकणों के भौतिक-रासायनिक गुणों को बढ़ाने के लिए एक सहज प्रतिरक्षा रक्षा तंत्र की अवधारणा बनाई जो प्राकृतिक रूप से मौजूद म्यूकस बाधाओं से प्रभावित और नष्ट हुए बिना आसानी से जठरान्त्रीय (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) मार्ग के माध्यम से शरीर के भीतर पहुँच सकते हैं।

ठोस लिपिड नैनोकणों की सतह पर विटामिन बी12 के लेपन ने आसानी से विलय न होने वाली (अघुलनशील) दवाओं की स्थिरता और लक्षित वितरण को बढ़ाया और लक्ष्य हट जाने की ऑफ-टारगेट क्रियाओं जोखिम को कम करने के साथ ही चिकित्सीय दक्षता को भी बढ़ाया। शोध से पता चला कि विटामिन बी12 एक ऐसा आवश्यक जीवनरक्षक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो सबसे उपेक्षित इस उष्णकटिबंधीय रोग से जुड़े विषाक्त दुष्प्रभावों को कम करके शरीर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, साथ ही इसके उपचार और रोकथाम के लिए एक अनूठे और लाभकारी पूरक के रूप में भी काम करता है। यह न केवल संक्रमण के जोखिम को कम करता है बल्कि व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि करता है। इसके अलावा यह मानव शरीर में विद्यमान पहले से ही प्राकृतिक आंतरिक विटामिन बी12 माध्यम मार्ग का उपयोग करके जैव उपलब्धता और लक्षित वितरण में भी सुधार करता है और इस प्रकार यह संक्रमण फैलने से रोकने के लिए प्रतिरोध भी विकसित कर रहा है।