IAS ने पेश की कर्तव्यपरायणता की अनूठी मिसाल, मां का अंतिम संस्कार किया, उसके तुरंत बाद बैठ कर दिया प्रदेश के बजट को अंतिम रूप


जयपुर. कहते हैं कर्तव्य कठोर होता है, भावप्रधान नहीं. कर्तव्य की भावना के बिना काम करना भूख के बिना खाना खाने जैसा है. और ऐसा ही एक नायाब उदाहरण राजस्थान सरकार के बजट पेश करने से पहले देखने को मिला. जहां एक कर्मठ, विजनरी, कर्तव्यपरायण सीनियर आईएएस अखिल अरोड़ा ने अपने कर्तव्य की अनूठी और मार्मिक मिसाल पेश की. 

दरअसल 20 फरवरी को सीनियर आईएएस अखिल अरोड़ा की माता का निधन हो गया था, निधन के बाद जहां उन्होंने अपनी माता की अर्थी को कंधा दिया. उनका अंतिम संस्कार किया. माता के निधन के बाद तीये की बैठक भी नहीं हुई थी कि उससे पहले ही तुरंत प्रदेश के बजट को अंतिम रूप देने में लग गए. दिन रात एक कर बजट को अंतिम रूप दिया. 22 फरवरी को राजस्थान के सीएम और अधिकारियों के साथ वो बजट को अंतिम रूप देते नजर आए.

IAS Akhil Arora

चूंकि अखिल अरोड़ा राजस्थान सरकार के वित्त विभाग के प्रमुख शासन सचिव हैं और उनका महत्व जाहिर सी बात है बजट के दौरान सबसे अहम होता है. ऐसे में उन्होंने ना केवल दुख की इस घड़ी में अपने पूरे परिवार को संभाला और उन्हें हिम्मत बंधाई बल्कि खुद ने भी अपने कर्तव्य और हिम्मत का हाथ थामे रखा और दुख की इस घड़ी में मां के निधन का विलाप कर अपने कर्तव्यों से पीछे हटने, काम से छुट्टी लेने के बजाए प्रदेश की जनता के हित में पेश किए जाने बजट पर फिर ध्यान केंद्रित कर लिया. 

करीबी बताते हैं कि अखिल अरोड़ा ए​क ​अनुभवी, संजिदा अफसर होने के साथ एक नेक दिल इंसान भी हैं. वो अपनी माता के निधन पर अपने आंसू रोक नहीं पा रहे थे, अपनी मां को खो देना किसी के लिए भी संसार का सबसे बड़ा दुख होता है. वो चाहते तो इस वक्त कर्तव्यविमूढ़ भी हो सकते थे लेकिन उन्होंने इस गम को चेहरे पर और अपने काम पर हावी नहीं होने दिया. यदि इस मुश्किल घड़ी में वो ऐसा करते तो एक तरफ परिवार की हिम्मत टूट जाती और दूसरी तरफ प्रदेश के जिन अफसरों और मुख्यमंत्री ने उन पर भरोसा कर इस पूरे बजट की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी थी कहीं ना कहीं उन पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ता. 

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ऐसे में उन्होंने एक पुत्र होने का कर्तव्य निभाते हुए माता का अंतिम संस्कार कर ना केवल परिवार को संभाला बल्कि इस दौरान बेहद की परिपक्वता की मिसाल पेश करते हुए मां के अंतिम संस्कार के बाद तुरंत बजट को अंतिम रूप देने में जुट गए. क्योंकि वो जानते हैं कि कर्तव्य कठोर होता है, भावप्रधान नहीं.

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ऐसे में आईएएस अखिल अरोड़ा की इस कर्तव्यपरायणा के ब्यूरोक्रेसी में उदाहरण पेश किए जा रहे हैं, और उनके इस कार्य समर्पण को हर कोई सलाम करता नजर आ रहा है.